वो लड़का जो आदमी बन गया

 वो लड़का

जो दुनिया की नजर में

आदमी बन चुका है

असल में एक बच्चा है।

जो लोगों की भीड़ में,

मंडी में,

किराने की दुकान में,

मेडिकल स्टोर में,

सबसे ज़्यादा दिखता है

असल में सबसे ज़्यादा 

अकेला है।


उसकी ज़िंदगी नही है कोई शायरी 

जहाँ हर दर्द पे मिली तालियाँ 

वो है एक joke

जिसकी बात पे हंसते हैं सब

ओर

उसकी ज़िंदगी है

एक एक्सेल शीट 

जहाँ हर 30 तारीख

पकड़नी होती है मुश्किल

जो रोज चेक करता है

बैंक एकाउंट

ओर लड़ लेता है घर में

वीकेंड पर

ताकि मार्किट ना जाने पड़े

ताकि कम खर्च हो


वो जान चुका है

कि कैसे हो पूछने वाले लोग

कोन हो पूछने लगे हैं

और कैसे हो पूछने वाले हाथ

अक्सर linkedin देखने के बाद बढ़ते हैं


उसका फोन हर वक़्त हाथ में रहता है ओर wifi ओंन

पर फिर भी

कोई ऐसा sms नोटिफिकेशन नहीं 

जिसमें लिखा हो "ठीक हो?”

2 3 साल हो गए शायद

"कैसे हो?" लिखा व्हाट्सएप आये भी


उसने अब अरमानों को पिन नहीं करता वॉल पर

वो जाता है शॉपिंग करने

बस सब्जी मंडी

लाता है हरी भरी ताजी सब्जी

फल जैसे सेब केले अनार

ओर खाता है रोटी अचार

सपनो को करता है सेव

 फ़ोल्डर में 

“Pending after fee EMI and bills” नाम से

वो चुप है आज

पर

हंसता है तो चीख चीख कर

ताकि सबको सुनाई दे

की खुश है सब सही है

उसकी चुप्पी कोई कमजोरी नहीं 

वो बस जानता है

कि हर बात का इलाज

संभब नही

कोई अगर कंधे पर सिर नही रखवाता

कोई बात नही

खुद की पीठ थपथपा लेता है


अब वो आईने में मुस्कुराता नहीं

बस देखता है

बाल ज्यादा सफेद तो नही

ओर

चेहरा थका हुआ तो नहीं


उसे पता है

कि हर सुबह ‘गुड मॉर्निंग’ नहीं होती

बस बोलने के लिए बोल देता है

गुड मॉर्निंग

अपने बगल में बैठने वालों को

चाहे हो ना

कुछ सुबहें बस होती हैं.

स्कूल तक जाने

ऑफिस तक जाने

ओर वापस आने के लिए


उसने सीखा है 

कि अकेलापन कोई दुश्मन नहीं

दोस्त है


वो लड़का

अब किसी से शिकायत नहीं करता

बस हंस देता है

फुट फुट कर

ओर हँसते हँसते जब

आंखें हो जाती है लाल

तो धो लेता है मुँह

बोलकर की कितना पॉल्युशन है

गुड़गांव में

सैयारा, आपके तानो से जीतकर आगे बढ़ने वाली पिक्चर

क्या आपने कभी सोचा है कि फिल्म ‘सैयारा’ सुपरहिट या ब्लॉकबस्टर कैसे बन गई?

आप सबके तानो की वजह से , सबके मना करने की वजह से, आप जैसे 30+ 40+ ऐज ग्रुप जो अपने को ज्यादा mature समझ रहे हैं, इलीट क्लास समझ रहे हैं उनको आईना दिखाया है इसने

ये बस एक 15-25 ऐज ग्रुप वाली सोच की फेक 30+ वाली सोच से लड़ाई है जिसमे पहले वाला ग्रुप जीत गया है। 

पहला ग्रुप मतलब, शुद्ध , बिना मसाले वाला, बिना दिमाग, बिना जजमेंट वाला प्यार। चाहे कहानी हो , गाने हों या अभियन, सब कुछ प्यूर सब कुछ ओरिजिनल 

दूध जैसी सच्ची, नदी जैसा अविरल बहने वाली कहानी

जब रणबीर कपूर की ‘एनिमल’ हिट हुई थी, तब भी आप जैसे बहुत से लोग चौंके थे इतनी हिंसक, नायक के चरित्र में कई खामियां, इतना खून खराबा, फिर भी फिल्म सफल? 

क्योकि बिना लाग लपेट के प्लैन वनीला मूवी ऐसी ही बनती है

या एनिमल या फिर ये। बीच का कोई रास्ता नही।

अब वही सवाल ‘सैयारा’ को लेकर उठ रहा है। दरअसल, ये दोनों फिल्में आज की युवा पीढ़ी खासतौर पर जेन Z और मिलेनियल्स के दिमाग को बखूबी समझती हैं।

अब बात ‘सैयारा’ की करें, तो ट्रेलर ने ही बता दिया था कि यह फिल्म 20+ के दिलों को छूने वाली है। जो बस मूवी इसलिए देखने जाते हैं कि मूवी देखनी है। फिल्म का हीरो मीडिया में फैले पक्षपात के खिलाफ आवाज उठाता है 

पेड रिव्यूज से मूवी हिट करवाई जा रही है, शो हिट करवाये जा रहे हैं। nepotism की बात भी रखी गयी है। वहीं सच्ची समीक्षाएं चुपचाप किनारे खड़ी हैं। फिल्म में एक संवाद है, "तयशुदा सवालों पर इंटरव्यू करना अब अच्छा नहीं लगता", जो आज के टाइम का कड़वा सच उजागर करता है।

अहान पांडे जरूर फिल्मी बैकग्राउंड से आते हैं, लेकिन अनीत पड्डा का कोई ऐसा बैकग्राउंड नही है 20 22 साल की एक्ट्रेस है दोनों की एक्टिंग अच्छी है।

आज कल की जनरेशन गलत को गलत कहने की हिम्मत रखते हैं

 नायक सिगरेट पीने की कोशिश करता है, तो नायिका साफ मना करती है, और जब नायक गाली देता है, तो वह भाषा पर आपत्ति जताती है। वह रात में काम न करने की शर्त भी रखती है। यही चीज युवा दर्शकों को भा रही है। मुह पर बोलो साफ बोलो काम से काम रखो काम करो पैसा कमाओ बस।

कुछ लोग कह रहे हैं कि ‘सैयारा’ कोरियन फिल्म ‘A Moment to Remember’ की कॉपी है। मैंने वो फिल्म नहीं देखी, इसलिए तुलना करना उचित नहीं है ओर आज के टाइम में तो प्यार भी लोग कॉपी करके करते हैं, inspire होकर।

तो अगली बार जब आप ‘सैयारा’ या ऐसी किसी फिल्म को देखें, तो यह ज़रूर सोचें कि वह किसकी कहानी कह रही है। आपको पसंद नही आई तो इससे ये सिद्ध नही हो जाता कि फ्लॉप है या बेकार है। और मुझे पसंद आई इससे भी ये सिद्ध नही हो जाता है कि अच्छी है

जाओ देखने तो अपने पैसे, पद, ईगो, रुतबा, ओर झूठी इमेज को घर ऱखकर जाओ, यकीन मानो अच्छी लगेगी फिर। बच्चे बनकर जाओ देखने, वह बच्चा जिसको कुछ नही पता ।

शुद्ध रोमांस, एक दो सीन को छोड़कर पारिवारिक फ़िल्म मजबूरी, दर्द, प्यार  पैसा और कैरियर के बीच में फंसे लोगों की कहानी। 

लाइफ एडवाइस

 मेरी बेटी

कभी मत झाँकना

गहरे काले कुँए में

(काले दिल वाले लोगों के दिलों में भी, पर पता कैसे चलेगा?

मैं बता दूंगा

चल जाता है

उतर जाता है रंग

कुछ दिनों में)

कभी मत पहनना

काले कपड़े

ओर ऐसे भी की

असहज लगे ख़ुद को भी

ओर बहुत बारीक कपड़े भी

ओर दूर रहना

बिना वजह

गिफ्ट चॉकलेट ओर फूल

देने वाले लोगों से भी

हमेशा पूछना की क्यों

ओर जब वो कहे ऐसे ही

तो मत लेना

100 सवाल पूछना

तभी लेना जब कन्विंस कर पाए

जो पहली नजर में अच्छा लगे उससे भी

मेरी बेटी मत करना बात

जो पिज़्ज़ा

मैक्रोनी की बात करता हो

कॉफ़ी की बात करता हो

हाँ

रोटी और emi की बात 

ओर बोरिंग बात करने वाले से ही करना बात


जाना

पर उस ओर कभी मत जाना

जिधर खड़े हों

काले-काले कुत्ते

सुवर, सांप

ओर आ रही हो बदबू

(ओर मैं उस बदबू की बात नही कर रहा

जो सूंघने से आ जाती है)

लाल ओर सफेद फूल

हरा पत्ता

कभी मत तोड़ना

(किसी का देखा हुआ सपना भी

ओर ना सपने पे हंसने को बोल रहा)

और अगर तोड़ना तो ऐसे

कि पेड़ को बेल को ज़रा भी

न हो कष्ट

ओर पेड़ को बात देना की क्यों तोड़ा

ओर अगर वो कन्विंस हो जाये तभी तोड़ना

दिल भी तोड़ना तो बता कर

की क्यों तोड़ा

मेरी बेटी

रात को रोटी का टुकड़ा

जब भी तोड़ना

सब्जी में, दाल में भिगोने के लिए

तो पहले हाथ जोड़कर 

कर लेना याद उस आदमी को

जिसने सबसे पहले

बताया होगा कि यही खाना है

ओर उस औरत को भी जो

बना रही है पसीने में भीगकर रोटी

ओर उसको भी, जो भीगी हुई है

सुनकर बॉस की गालियाँ

(जो रोज पड़ने पर गालियां नही लगती)


मेरी बेटी

अगर कभी घर में लाल चींटियाँ

दिखाई पड़ें किचन में

तो भगाना मत उनको

तो समझना

बेइंतहा पैसा आने वाला है

चारों तरफ से


अगर कई-कई रातों तक

कभी ना आये नींद

तो मुझे जरूर बताना बात

ओर सो जाना

पर कभी ये मत सोचना की

बुरे दिन आने वाले हैं

ओर कोई नही है तुम्हारे साथ


मेरी बेटी

पहाड़ पर चढ़कर कभी मत गिरना

(पहाड़ मतलब? मतबल जब जेब भर जाएं, पेट भर जाए, ओर आदमी को आदमी समझना बंद कर दो)

और कभी गिर भी पड़ो

तो घास की तरह उठने के लिए

(घास मतलब? Down to earth)

हमेशा रहना रेडी

मेरी बेटी

कभी अकेले फंस जाना अगर अँधेरे में

अगर भूल जाना रास्ता

तो गूगल मैप पर नहीं

सिर्फ़ बहुत दूर से आनेवाली

कुत्तों के भोकने की आवाज़ पर

भरोसा करना ओर मुझे याद करना

स्कूल की छत से कूद मत जाना


मेरी बेटी

अगर होमवर्क ना हो

अगर एग्जाम की तैयारी ठीक से ना हो

अगर स्कूल में कोई परेसानी हो

तो बताना जरूर


और सबसे बड़ी बात मेरी बेटी

कि सुन चुकने के बाद

दिन भर सबकी कड़वी बातें

उन चुभने वाले शब्दों को

पोंछकर साफ़ कर देना


ताकि कल जब फिर से दिन निकले

सुबह हो

तो तुम्हारा मन

नया, 

धुला हुआ, खुशबूदार

स्वच्छ

ओर चमकता मिले

ओर चेहरे पर मुस्कान

इतनी प्यारी की

आस पास महक जाए खुश्बू

ओर खिल उठें फूल

जो बस इसी बात का कर रहे थे wait

ओर चाय जरूर पिलाना बनाकर मुझे

जब बड़ी हो जाना

पर इतनी बड़ी कभी ना होना

की मैं जब रोना चाहूँ गले लगकर तुम्हारे

तो मुझे लगानी पड़े सीढ़ी

लाइफ एडवाइस

मेरे दोस्त

कभी मत झाँकना

गहरे काले कुँए में

(काले दिल वाले लोगों के दिलों में भी, पर पता कैसे चलेगा?

मैं बता दूंगा

चल जाता है

उतर जाता है रंग

कुछ दिनों में)

कभी मत पहनना

काले कपड़े

ओर बहुत बारीक कपड़े भी

ओर दूर रहना

बिना वजह

गिफ्ट चॉकलेट ओर फूल

देने वाले लोगों से भी


जाना

पर उस ओर कभी मत जाना

जिधर खड़े हों

काले-काले कुत्ते

सुवर, सांप

ओर आ रही हो बदबू

(ओर मैं उस बदबू की बात नही कर रहा

जो सूंघने से आ जाती है)

लाल ओर सफेद फूल

हरा पत्ता

कभी मत तोड़ना

(किसी का देखा हुआ सपना भी

ओर ना सपने पे हंसने को बोल रहा)

और अगर तोड़ना तो ऐसे

कि पेड़ को बेल को ज़रा भी

न हो कष्ट

ओर पेड़ को बात देना की क्यों तोड़ा


रात को रोटी का टुकड़ा

जब भी तोड़ना

सब्जी में, दाल में भिगोने के लिए

तो पहले हाथ जोड़कर 

कर लेना याद उस आदमी को

जिसने सबसे पहले

बताया होगा कि यही खाना है

ओर उस औरत को भी जो

बना रही है पसीने में भीगकर रोटी

ओर उसको भी, जो भीगी हुई है

सुनकर बॉस की गालियाँ

(जो रोज पड़ने पर गालियां नही लगती)

और कर लेना याद

उसको जिसने अभी तक नही खाया खाना

तुम्हारी याद में नहीं

बल्कि इसलिए

क्योकि तुम्हारे बोले शब्द

उसके ह्रदय में चुभ रहे है

वही नार्मल से शब्द

जो ऐसे ही बोल दिए थे lightly

चाय पीते पीते की chatgpt 

से आसान हो जाता है

झूठी तारीफ़ करना।


अगर कभी घर में लाल चींटियाँ

दिखाई पड़ें किचन में

तो भगाना मत उनको

तो समझना

बेइंतहा पैसा आने वाला है

चारों तरफ से


अगर कई-कई रातों तक

कभी ना आये नींद

तो  passiflora incarnata

ले आना, या मंगा लेना

ओर सो जाना

पर कभी ये मत सोचना की

बुरे दिन आने वाले हैं


मेरे दोस्त

पहाड़ पर चढ़कर कभी मत गिरना

(पहाड़ मतलब? मतबल जब जेब भर जाएं, पेट भर जाए, ओर आदमी को आदमी समझना बंद कर दो)

और कभी गिर भी पड़ो

तो घास की तरह उठने के लिए

(घास मतलब? Down to earth)

हमेशा रहना रेडी


कभी अकेले फंस जाना अगर अँधेरे में

अगर भूल जाना रास्ता

तो गूगल मैप पर नहीं

सिर्फ़ बहुत दूर से आनेवाली

कुत्तों के भोकने की आवाज़ पर

भरोसा करना ओर मुझे याद करना


मेरे दोस्त

बुध को पार्टी में कभी मत जाना

और इतवार की रात को अच्छे से जल्दी सो जाना


और सबसे बड़ी बात मेरे दोस्त

कि सुन चुकने के बाद

दिन भर बॉस के ताने


उन चुभने वाले शब्दों को पोंछकर साफ़ कर देना


ताकि कल जब फिर से दिन निकले

सुबह हो

तो तुम्हारा मन

नया, 

धुला हुआ, खुशबूदार

स्वच्छ

ओर चमकता मिले

ओर चेहरे पर मुस्कान

इतनी प्यारी की

आस पास महक जाए खुश्बू

ओर खिल उठें फूल

जो बस इसी बात का कर रहे थे wait

ओर चाय जरूर पीना बनाकर सुबह

ग़लती और माफी

सब कुछ पहले जैसा ना हो पाने का गम

आंखें नम

चुभने लगा है अब 

तुम्हारा

ना बोल के सब बोल देना

ओर ये बोल देना की सब ok है

ये घड़ी की सुईं

जो आगे नही बढ़ रही 3 दिनों से

हर पल हर लम्हा

इसी आस में की

कौन सा जतन, कौन सी बात

तुम्हे दोबारा मेरे उतने पास लेके आएगी

क्या चीज होगी, जो माफी देगी

जो तुम्हे मेरे फिर से गले लगा देगी

जिससे हमारे बीच बने मूक संबंध

जिसको तुम बोल रहे हो कि सब ठीक है (जोकि है नही)

अपनी सीमाओं को लांघकर

प्रेम की अविरल धारा में बह जाएंगे

क्या तुम भी नहीं बहा सकती

अब मेरे सारे दोष

जैसे नदी बहा ले जाती है

सारे पाप अपने साथ

तुम्हे पता है कि पा लेने से कहीं ऊपर

ओर खो देने के भय के तले

बसता है मेरा प्रेम तुम्हारे लिए

मेरे पास कोई मायका नही है

ना दसवीं क्लास की कोई सहेली

जिसको बात सकूँ ये सब बातें

कि कैसा लगता है जब

मनाने वाली सारी बाते खत्म हो जाती हैं

ओर छा जाती है चेहरे पर 

उदासी की अदृश्य पटकथा

जिसको पढ़ने वाले ने फेरा हुआ है अपना मुँह

कौन पढ़ेगा ये बैचेनी

कौन देखेगा ना बहने वाले आँशु

कोंन करेगा वो टीस महसूस

जो फाड़ रही है दिल को

सुनो, एक वक्त के बात बातें खत्म हो जाती हैं

बस साथ मायने रखता है

तुम्हारे पैरों की धूल 

रोटी पर नमक की तरह लगा

ओर अश्कों को चुपड़कर घी की तरह

खाया है मैंने 

भूल गयी?

थका थका तन है

अशांत भटकता दिल दिमाग मन है

भावनाएं जैसे मर गई

कुछ तो गलत है

पर पता नही क्या

ओर पता नही कब सही होगा

बोलो?

एक ओर बात है जो कहनी है तुमसे

कि प्रेम की एक और definition है

कि मैं तुम्हे बिना बताए भी तुमसे प्रेम कर सकता हूँ

ओर कोई मुझे रोक नहीं सकता

उसके लिए मुझे कोई फैंसी बात नही बनानी

कोई दिखावा नही करना, कोई गिफ्ट नही

ये कितना सरल और आसान है

कितना पवित्र

बस यही एक रास्ता बचा है अब शायद

मेरे अंदर एक जंगल है

उदास घना गहरा

अनकही आवाजों का जंगल

उसको समझ ना पाओ

तो काटना भी मत






अधूरापन

अगस्त की एक आखिरी उदास शाम, एक अधूरेपन का एहसास लिए। लगता है शामें हमेशा से अधूरी ही रही, जब तक लगने को होता है की शाम है, तब तक रात होने लगती है।
जामनी बादल सांसे रोके पड़े हुए हैं और उनके पीछे से सूरज बेमन से ऐसे झांक रहा है जैसे उसे छिपने की जल्दी हो।
जिंदगी के उस पड़ाव पर हूँ शायद, की पीछे मुड़के देखता हूँ तो पाता हूँ कि मैं कुछ भी पूरा नहीं बन पाया। कभी कुछ पूरा नहीं कर पाया। ना प्यार, ना नफरत, ना बचत, ना फिजूलखर्ची, ना आवारापन और ना आज्ञाकारी ही। 

कभी ड्रिंक नहीं की, ना स्मोकिंग, न ड्रग्स, ना नॉनवेज (ये इतनी बड़ी चीजें नहीं लगी कभी वैसे जैसा आप लोगों ने बना रखी हैं) ना कभी 5 मिनट वाला प्यार किया। कभी न साथ छोड़ने वाला अधूरापन मेरा बेस्ट फ्रेंड बना रहा हमेशा। और मैं उस अधूरेपन को भी पूरा साथ, पूरा समय नहीं दे पाया। हमेशा ऐसा लगा की जो किया उससे अच्छा कर सकता था जितना खुश रहा उससे ज्यादा रह सकता था।

पर ये अधूरेपन का सुकून ही था जिसने कभी कुछ पूरा नहीं करने दिया और जिंदगी शायद ऐसा ही चाहती है, पूरा हुआ मतलब ख़तम हुआ।  

एक अच्छा बेटा बनना शायद कभी नहीं आया मेरे हिस्से. अच्छा भाई भी हो पाया ऐसा लगा नहीं कभी। कभी फेवरेट कलर, फ़ेवरेट मूवी, क्या होती है ऐसा डिस्कशन नहीं किया। कितने दोस्त हैं या कभी रहे भी या दोस्त किसे कहते है पता नहीं। दोस्त कहलाने का अधिकार खो चुका हूं।

किसी का पूरा प्रेमी बना भी या नहीं, पता नहीं। और अगर बना भी तो उसके हिस्से का प्रेम उसे दे पाया कि नहीं, इसका मूल्यांकन भी वही करेगी जिसे मैं थोड़ा बहुत भी मिला हूं। शायद 45% ही या उससे भी कम।

हर सुबह उठता हूं अधूरी नींद लिए आँखों में, और एक लिस्ट लिए दिमाग में की क्या करना है और कुछ पूरा कर पाने की जद्दोजहद में वह दिन और वो काम अधूरा छोड़कर सबकुछ करता हूं जिन्हें आप लोग जरुरी काम समझते हैं। किसी भी चीज का मन नहीं, उदास रहने में एक सुकून, एक कम्फर्ट, और खुश रहने में एफर्ट और एनर्जी वेस्टऐज ऐसा लगता है। क्यों हँसू मैं, क्या होगा उससे? क्यों भीगूँ बारिश में और क्यों बनूँ रोमांटिक?

मैं यह कभी तय नहीं कर पाया बचपन से ही कि मुझे फुर्सत के क्षण क्या करना है। पास्ट टाइम, ये क्या होता है? हॉबी, ये क्या होता है? जैसे लम्बे रुट की कोई पुरानी धीमी चलती बस, जो बस चलती ही जा रही है सबको पासिंग देती, बिना किसी डेस्टिनेशन की फिक्र किए। मानो कहीं रुकने का भी मन नहीं और कहीं पहुँचने की भी बेचैनी नहीं, जहां जाकर रुक जायेगी वही उसका गंतव्य होगा।  पानी की टंकी को भरता देखना मेरा काम था और भर जाने पर छत से चिल्लाना की भर गयी, एक घंटे तक एक छोटा बच्चा कैसे एक जगह बैठ सकता है?

मेरा स्वयं पर नियंत्रण नहीं रहा कभी, जिसने जहाँ धकेल दिया उसी तरफ चल पड़ा। मेरे हिस्से एक देह बची है और थोड़ी बहुत सूझ बूझ भी जिससे इतना तय कर पा रहा हूं कि दुखी होने पर थोड़ा रो लेना चाहिए, भूख लगने पर थोड़ा खा लेना चाहिए (जो भी मिले), प्यास लगने पर पी लेना चाहिए, किसी को हँसता देखकर हंसने जैसा मुँह कर लेना चाहिए और किसी के जबरदस्ती बात करने पर थोड़ी बात कर लेना चाहिए।

हाँ कुछ लोग अभी भी बचे हैं (जैसे तुम) जिसने बातें करने की इच्छा हमेशा बनी रहती है (पर कोई टॉपिक नहीं कोई बहाना नहीं) फिर भी ऐसा लगता है दिनचर्या का जरूरी हिस्सा हों। इन सबके इतर जीवन को जीने के कई और बहाने भी हैं। जैसे सब्जी लाना फल लाना होमवर्क करवाना लिफ्ट में कोई मिले तो हेलो बोल देना। जिनमें मैं आप को ज़िंदा पाता हूं रोज सुबह।

हर सुबह उठते ही मेरे ज़िंदा होने का एहसास होता है और मुझे लगता है कि मेरा होना तमाम निराशाओं, हताशाओं, आशाओं और उम्मीदों का समुच्चय है। जीवन कितना भी नीरस क्यों न लगे, मेरे हिस्से की खुशियां मुझसे नहीं छीन सकता ये भी है वैसे एक बात। इंसान भी पेड़ पौधों की तरह होते हैं खिलने और मुरझाने के समय फिक्स होते हैं। पर ये समय कितना भी उदास हो, आगे आने वाली खुशियों से तो कमजोर ही है। तुम मेरी सारी उमीदों को रोंद सकते हो, बाग़ के सारे फल फूल तोड़ सकते हो, सारे सपनों को झूठा ठहरा सकते हो, कह सकते हो कि इस अँधेरी गुफा का कोई अंत नहीं और मैं शायद मान भी लूँ पर बसंत को आने से कैसे रोक लोगे?
बोलो ?

बड़ा आदमी

कभी कभी मुझे होता है संदेह

कि मै भी दूसरो की तरह

हूँ एक साधारण आदमी

तो इस संदेह को दूर

करने के लिए मैं

रख लेता हूँ किसी को नोकरी पर

2000 Rs महीना।

किसी को ऐसे डाँटता हूँ 

कि वह काँपने लगता है।

किसी की तरफ उंगली करके आर्डर देके,

किसी को सबके सामने डांट के

किसी को वेट करवा के

किसी का फ़ोन काट के

वेटर को, कस्टमर केअर को गुस्सा करके

बन जाता हूँ असाधारण।

पाल लेता हूँ कुत्ता

रास्ते में खाता हूं सेब

कितना आसान है

सभ्य बनना, बडा आदमी बनना, अमीर बनना।

किसी को दरवाजे के बाहर 

इतनी देर तक खड़ा रखता हूँ

कि वह अपमानित होकर 

चुपचाप चला जाता है।

रेड लाइट पे शीशा नीचे ही नही करता।

डिलीवरी वाले की तरफ बिना देखे

ले लेता हूँ सामान

ओर कर देता हूँ गेट बंद उसके मुंह पर

4 डिग्री टेम्प्रेचर पे करवाता हूँ

कार साफ

लगवाता हूँ पोछा

ओर बन जाता हूँ

बड़ा आदमी।