क्या आपने कभी सोचा है कि फिल्म ‘सैयारा’ सुपरहिट या ब्लॉकबस्टर कैसे बन गई?
आप सबके तानो की वजह से , सबके मना करने की वजह से, आप जैसे 30+ 40+ ऐज ग्रुप जो अपने को ज्यादा mature समझ रहे हैं, इलीट क्लास समझ रहे हैं उनको आईना दिखाया है इसने
ये बस एक 15-25 ऐज ग्रुप वाली सोच की फेक 30+ वाली सोच से लड़ाई है जिसमे पहले वाला ग्रुप जीत गया है।
पहला ग्रुप मतलब, शुद्ध , बिना मसाले वाला, बिना दिमाग, बिना जजमेंट वाला प्यार। चाहे कहानी हो , गाने हों या अभियन, सब कुछ प्यूर सब कुछ ओरिजिनल
दूध जैसी सच्ची, नदी जैसा अविरल बहने वाली कहानी
जब रणबीर कपूर की ‘एनिमल’ हिट हुई थी, तब भी आप जैसे बहुत से लोग चौंके थे इतनी हिंसक, नायक के चरित्र में कई खामियां, इतना खून खराबा, फिर भी फिल्म सफल?
क्योकि बिना लाग लपेट के प्लैन वनीला मूवी ऐसी ही बनती है
या एनिमल या फिर ये। बीच का कोई रास्ता नही।
अब वही सवाल ‘सैयारा’ को लेकर उठ रहा है। दरअसल, ये दोनों फिल्में आज की युवा पीढ़ी खासतौर पर जेन Z और मिलेनियल्स के दिमाग को बखूबी समझती हैं।
अब बात ‘सैयारा’ की करें, तो ट्रेलर ने ही बता दिया था कि यह फिल्म 20+ के दिलों को छूने वाली है। जो बस मूवी इसलिए देखने जाते हैं कि मूवी देखनी है। फिल्म का हीरो मीडिया में फैले पक्षपात के खिलाफ आवाज उठाता है
पेड रिव्यूज से मूवी हिट करवाई जा रही है, शो हिट करवाये जा रहे हैं। nepotism की बात भी रखी गयी है। वहीं सच्ची समीक्षाएं चुपचाप किनारे खड़ी हैं। फिल्म में एक संवाद है, "तयशुदा सवालों पर इंटरव्यू करना अब अच्छा नहीं लगता", जो आज के टाइम का कड़वा सच उजागर करता है।
अहान पांडे जरूर फिल्मी बैकग्राउंड से आते हैं, लेकिन अनीत पड्डा का कोई ऐसा बैकग्राउंड नही है 20 22 साल की एक्ट्रेस है दोनों की एक्टिंग अच्छी है।
आज कल की जनरेशन गलत को गलत कहने की हिम्मत रखते हैं
नायक सिगरेट पीने की कोशिश करता है, तो नायिका साफ मना करती है, और जब नायक गाली देता है, तो वह भाषा पर आपत्ति जताती है। वह रात में काम न करने की शर्त भी रखती है। यही चीज युवा दर्शकों को भा रही है। मुह पर बोलो साफ बोलो काम से काम रखो काम करो पैसा कमाओ बस।
कुछ लोग कह रहे हैं कि ‘सैयारा’ कोरियन फिल्म ‘A Moment to Remember’ की कॉपी है। मैंने वो फिल्म नहीं देखी, इसलिए तुलना करना उचित नहीं है ओर आज के टाइम में तो प्यार भी लोग कॉपी करके करते हैं, inspire होकर।
तो अगली बार जब आप ‘सैयारा’ या ऐसी किसी फिल्म को देखें, तो यह ज़रूर सोचें कि वह किसकी कहानी कह रही है। आपको पसंद नही आई तो इससे ये सिद्ध नही हो जाता कि फ्लॉप है या बेकार है। और मुझे पसंद आई इससे भी ये सिद्ध नही हो जाता है कि अच्छी है
जाओ देखने तो अपने पैसे, पद, ईगो, रुतबा, ओर झूठी इमेज को घर ऱखकर जाओ, यकीन मानो अच्छी लगेगी फिर। बच्चे बनकर जाओ देखने, वह बच्चा जिसको कुछ नही पता ।
शुद्ध रोमांस, एक दो सीन को छोड़कर पारिवारिक फ़िल्म मजबूरी, दर्द, प्यार पैसा और कैरियर के बीच में फंसे लोगों की कहानी।
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