ग़लती और माफी

सब कुछ पहले जैसा ना हो पाने का गम

आंखें नम

चुभने लगा है अब 

तुम्हारा

ना बोल के सब बोल देना

ओर ये बोल देना की सब ok है

ये घड़ी की सुईं

जो आगे नही बढ़ रही 3 दिनों से

हर पल हर लम्हा

इसी आस में की

कौन सा जतन, कौन सी बात

तुम्हे दोबारा मेरे उतने पास लेके आएगी

क्या चीज होगी, जो माफी देगी

जो तुम्हे मेरे फिर से गले लगा देगी

जिससे हमारे बीच बने मूक संबंध

जिसको तुम बोल रहे हो कि सब ठीक है (जोकि है नही)

अपनी सीमाओं को लांघकर

प्रेम की अविरल धारा में बह जाएंगे

क्या तुम भी नहीं बहा सकती

अब मेरे सारे दोष

जैसे नदी बहा ले जाती है

सारे पाप अपने साथ

तुम्हे पता है कि पा लेने से कहीं ऊपर

ओर खो देने के भय के तले

बसता है मेरा प्रेम तुम्हारे लिए

मेरे पास कोई मायका नही है

ना दसवीं क्लास की कोई सहेली

जिसको बात सकूँ ये सब बातें

कि कैसा लगता है जब

मनाने वाली सारी बाते खत्म हो जाती हैं

ओर छा जाती है चेहरे पर 

उदासी की अदृश्य पटकथा

जिसको पढ़ने वाले ने फेरा हुआ है अपना मुँह

कौन पढ़ेगा ये बैचेनी

कौन देखेगा ना बहने वाले आँशु

कोंन करेगा वो टीस महसूस

जो फाड़ रही है दिल को

सुनो, एक वक्त के बात बातें खत्म हो जाती हैं

बस साथ मायने रखता है

तुम्हारे पैरों की धूल 

रोटी पर नमक की तरह लगा

ओर अश्कों को चुपड़कर घी की तरह

खाया है मैंने 

भूल गयी?

थका थका तन है

अशांत भटकता दिल दिमाग मन है

भावनाएं जैसे मर गई

कुछ तो गलत है

पर पता नही क्या

ओर पता नही कब सही होगा

बोलो?

एक ओर बात है जो कहनी है तुमसे

कि प्रेम की एक और definition है

कि मैं तुम्हे बिना बताए भी तुमसे प्रेम कर सकता हूँ

ओर कोई मुझे रोक नहीं सकता

उसके लिए मुझे कोई फैंसी बात नही बनानी

कोई दिखावा नही करना, कोई गिफ्ट नही

ये कितना सरल और आसान है

कितना पवित्र

बस यही एक रास्ता बचा है अब शायद

मेरे अंदर एक जंगल है

उदास घना गहरा

अनकही आवाजों का जंगल

उसको समझ ना पाओ

तो काटना भी मत






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