मुझे लिखने का बहुत शोक है
और ये शोक छुट्टी के दिन और भी बढ़ जाता है
कभी सोचता हूँ मोसम के बारे में लिखूंगा
पर
"ठंडी हवा के झोखे दिल को छू गए"
के बाद क्या लिखा जाना होता है, समझ नही आता
फिर सोचता हूँ कि आतंकवाद, नेता, राजनीती, गरीब के ऊपर लिखूंगा
पर अपनी उमर का लिहाज करता हूँ
फिर टुटा हुआ दिल बचता है
पर उस पर ही कितना लिखूं
टूटे दिल और चाँद को छोड़ दिया जाए तो लिखने के लिए बहुत कम मैटर बचता है
शेर ओ शायरी कर नही पाता क्योकि आती नहीं और उर्दू के १०-२० शब्द ही आते हैं
माँ के ऊपर भी क्या लिखूं इतनी अकल नही आई है अभी की इतने सीरियस टोपिक पे कुछ लिख सकूँ
बेटी के ऊपर लिख नही सकता अभी सोच उतनी परिपक्व नही हुई
और लोग शक करने लगेंगे
और बाप बेटे जैसे बोरिंग सब्जेक्ट के ऊपर कोई लिखता नही
बचता ये है :
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उधार के सपने लिए और
हवाओ से बाते की
और
उसके
दिए पंखो
से उडा भी मै
पर
दोस्ती और प्यार में फर्क होता है
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मेरे
और तेरे बीच
कुछ न कुछ तो था ही
वर्ना
लोग
बिना मतलब
इतना परेशान नहीं होते
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देखते ही चाँद के साथ हो लिया
आवारा तो था मेरा दिल
पर इतना होगा
इसका अहसास नहीं था
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16 comments:
बहुत सही लिख रहे हो!
अभिव्यक्ति को कलम की धार बना रहे हैं आप |
बहुत अच्छे | धन्यवाद |
इतनी सीमाओं के बावजूद आपने बहुत अच्छा लिखा है..........बधाई।
वाह! बढ़िया है । अच्छा लिख रहे हैं आप।
घुघूती बासूती
लिखते रहिये भाई ...
देखते ही चाँद के साथ हो लिया
आवारा तो था मेरा दिल
पर इतना होगा
इसका अहसास नहीं था
वाह!बहुत अच्छे-लिखते रहिये
अरे वह, लिखने के लिए कोई विषय न मिलने पर भी आपने इतना अच्छा लिखे. आगे भी लिखते रहिये.
देखा इतने परेशां हुए इसलिए कविता बन गई .जब सच में लिखने का मूड बना लोगे तो धमाल हो जाएगा .....झकास लिखते हो बीडू ,काहे को इतना सोचते हो.....वैसे चश्मे में handsome लग रहे हो
bahut accha to likh rahe ho bhai ..
likhte rahiye..
appko bahut badhai...
vijay
pls visit my blog for new poems: http://poemsofvijay.blogspot.com/
मेरे और तेरे बीच क्या था दोस्ती या प्यार येतो आ ही बेहतर बता सकते हैं... पर इतना मत
उडि़येगा कि लौटना ही मुश्किल हो जाए.....अनुराग जी ने चश्मे वाली बात सही कही है...!
kabhi-kabhi yun hi Dil ki baat shabdon me byan hoker kamaal kar jaati hai. aapke saath bhi kuch aisa hi hai. Maa k baare me likhna ho to likh sakte hain. mere blog ki purani post kabhi fursat m padhiye...Dil lgayenge to aankhe nam ho uthengi. ek baat aur ki Baap-Bete ka subject boring nahi hai. Pita bhi Maa Jitna hi Pyaar karte hain...bas kah nahi paate.. keep it up...
नववर्ष की शुभकामनाएँ
Nav Varas ki subh kamnayen.....
बाप रे! टोपिक सोचने में इतना सोचना पड़ा...वैसे सोचने का नतीजा अच्छा आया है :) आखरी वाला बेहद खूबसूरत है. वैसे आवारेपन को किस मीटर में नापा था? :D नए साल की बधाई :)
प्रशांत,
आवारगी, और क्या यही पहचान है
यह देख के दिल्ली की लड़्कियाँ परेशां है.
अंतिम टुकड़ा अच्छा बन पड़ा है.
मुकेश कुमार तिवारी
jinhe kuch pata nahin hota ,vahi naya pata banate hai.
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