गध, पध, कहानी, काव्य,
क्षणिकाऔ में बुरी तरह
सफल होने के बाद २ अक्टूबर २००८ को जब मै समीर लाल जी की
पुरानी पोस्ट पढ़ रहा था तो मुझे हाइकु का असली मतलब का पता चला।
इससे पहले तो मै समझता था की
एक बहुत उदास, निराश, दुखी कवि के अंतर्मन से निकली हूक को हाइकु कहते होंगे.
आश्चर्य के कारण मेरी दोनों आँखे फटी की फटी रह गई की मुझे हिन्दी की इस परजाती के बारे में इतनी देर से पता चला। मेरे जैसे लेखक के लिए इससे शर्म की बात क्या हो सकती है.
मैंने तुंरत गूगल अंकल में सर्च मारी और हाइकु के बारे में जानकारी चाही। उन्होंने हमेशा की तरह बिना आवे टावे दिए
मुझे बताया की ये एक ऐसी जापानी कविता है जिसमे ३ पंक्तियाँ होती है और पहली पंक्ति में ५, दूसरी में ७,और तीसरी में ५ अक्षर होते हैं। छोटी कविता, इतनी छोटी की शुरू होने से पहले ही ख़तम.
प्रकर्ती का वर्णन होता है इसमे, ये भी बताया गया.
बस फिर क्या था मुझे हाइकु लिखनी थी और बस लिखनी थी।
सबसे पहली समस्या आई की वो १७ अक्षर लाये कहाँ से जायें वो भी ऐसे वैसे नही, कसे हुए १७ अक्षर जो की प्रकर्ती से सम्बन्ध रखते हों.
आम सबसे
पहले दिमाग में आया। फिर क्या था अमरुद के पेड़ से लेकर पीपल की ठंडी हवा, पानी, शर्दी की धूप, रेत, सूरज, चाँद, तारे, आसमान, रेल, मूंगफली, केले, दोपहरी, नदी, पानी, पतंग, डोर, बचपन, गाँव, गुड, आँगन, झूले, बसंत और न जाने क्या क्या, सब एक कागज पे लिख लिए।
आदमी अगर ठान ले तो क्या नही कर सकता.
और शुरू कर दिए हाइकु लिखने
आपको पसंद न आने के बावजूद भी पसंद आयेंगे
आम का पेड़
पर आम नही है
चोरी हो गए
एक
रुपया
क्या खरीदूं
पतंग या ङोर
मामा आए है
केले सेब लाये हैं
खायेंगे हम
दोपहरी में
चाचा चौधरी और
साबू की वापसी
मै हूँ और
कागज की नाव भी
बारिश कहाँ
ससुराल में
गुड की चाय को
कैसे पीता मै