मेढ़क

फ़ुदका मेढ़क, बार बार

सैकडो बार गुस्से मे।
जैसे

अपनी भयंकर विवशता की कहानी कह रहा हो

निर्जीव

सुखे कुए की दीवारों से

1 comment:

PD said...

एक नजर में देखने से लगेगा की कोई हंसी मजाक वाली कविता लिखी गयी है..
मगर इसका गूढ़ अर्थ भी निकला जा सकता है..
बढ़िया है..