एक कटोरी हवा

बड़ा बनने का सोचना ही कितना गलत रास्ता है। मुझे ऐसा इंसान बनना है, की कोई मुझसे मिलकर लौटे, तो अपने घर मे मेरी बात करे, अपने बच्चों से, भाई बहनों से मेरे सादेपन की बात बताये, कोई मेरे घर से लौटे तो इतना सारा सादापन लेकर लौटे जो कई महीनों तक चले उसके साथ।  

ओर मेरी बातें कानों से रिसकर जहन तक पहुंचे और वहीं बस जाए

जैसे रिटायर होकर लोग बस जाते हैं पहाड़ों पर जाकर।

हमेशा सोचता था कि बड़ा आदमी बनूँगा, अमीर आदमी। अमीर होने का सोचना, यह दिशा ही कितनी गलत है, असल में सादा हो जाने का सोचना चाहिए। इतना सादा कि जब शब्द इतने सलीक़े से धीरे धीरे रखे जाएँ कि कहीं पन्ने को चोट न लग जाये। शब्द ओर पन्ने के बीच बहुत गहरा रिश्ता है 

पढ़ने वाले को शब्द जब समझ नही आते तो वो पन्नो से उसकी बुराई करते हैं।

मुझे भी इतना धीमा बोलना ओर मुस्कुराते हुए बोलना है की, जब शब्द मुँह से बाहर निकलें तो हवा को चोट न लगे, मैं अपने आप को दुनिया  में लोगों के सामने ऐसे रखूंगा कि ज़मीन को चोट ना लग जाए। बड़ा होकर नही बच्चा होकर जीना है ।

हवा चल रही है ठंडी

ज्यादा नही बस थोड़ी सी

थोड़ी सी का अलग मजा है

पूरा होने पर अलगाव का रिस्क रहता है। हवा ऐसी है

जो किसी को चोट नही पहुंचा रही

न चाँद किसी को चोट पहुंचाता

धरती भी कभी नही सोचती की ओर बड़ी हो जाऊं ओर चोट पहुंचाने वाली बात करूं

नदी पहाड़ पेड़ बर्फ सब एक जैसा ही सोचते हैं

ओरिजिनल होकर जीना कितना आसान है, कितना सादा, कितना सरल।

मुसीबत आने पर पता चलता है कि हमें क्या चाहिए

सच मे कुछ चाहिए ही नही

घर, 2 रोटी, एक कटोरी ठंडी हवा

दो घूंट धूप

बिना बताए समझने वाले 2 4 लोग

प्लास्टिक के जैसी नपी तुली हँसी से दूर

पानी के जैसी ओरिजिनल हँसी

होठों से नही आंखों से

बिकॉज़ होटों से हँसने पर आवाज आती है

इतनी अंडरस्टैंडिंग मुझे बनानी है जितनी चाँद ओर तारों के बीच की है

बिना जोर से बोले एक दुसरे को बता देते हैं

की चल भाई मेरी ड्यूटी खत्म, तेरी शुरू

नही चांद ओर सूरज एक्चुअली


मुझे कुछ समय के लिए उन सारे पागलपन से दूर जाना है

जो एक स्ट्रक्चर की तरफ ले जा रहे हैं, की कैसे उठना है, कैसे बैठना है, हँसने पर कितना मुँह खुलना चाहिए क्योंकि ऐसे मैं पागल हो जाऊंगा,

ज्यादा नही तो थोड़ा तो जरूर

अपनी भूमिका के साथ भ्रमित हो जाऊंगा, यह सोचकर कि वो ही मेरी असली पहचान है

जोकि है नही 

मैं अपनी भूमिका नहीं हूं, अपना कैरेक्टर नही हूँ 

उससे कहीं गहरा हूँ

इसलिए मुझे जंगल, घने काले जंगल में जाना है या कहीं भी अकेले

प्राकृतिक स्थान पर जाना है, अपने आप से बात करनी है

और पता लगाना है कि मैं वास्तव में कौन हूँ

ओर अगर ऐसा हो पायेगा तो कितनी सरल बात होगी, जो ये बताएगी की मैं कुछ हूँ ही नही